हवस का नतीजा : राज ने भाभी के साथ क्या किया

महिमा का शरीर बुखार से तप रहा था, और रसोई की जिम्मेदारियाँ उसे और भी थका रही थीं। सब्जी बनाते-बनाते अचानक उसकी तबीयत और बिगड़ गई। तभी उसका देवर राज वहां पानी पीने आया। उसने महिमा की हालत देखी और माथे पर हाथ रखा। “भाभी, आप बहुत बीमार लग रही हैं,” उसने कहा।

हां…” महिमा ने धीमी आवाज में कहा, “सुबह सब ठीक था, लेकिन दोपहर से अचानक बुखार बढ़ गया।

क्या आपने भैया को बताया?राज ने चिंतित स्वर में पूछा।

नहीं, वे परसों लौटेंगे। बेकार परेशान होंगे। आज रात तो हो ही गई है, बस कल की बात है,महिमा ने जवाब दिया।

राज को महिमा की चिंता थी, लेकिन उसने कहा, लेकिन भाभी, आपको आराम करना चाहिए।

महिमा ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, कोई बात नहीं, यह बस मामूली बुखार है। तुम अपनी पढ़ाई करो, मैं खुद ही सब कर लूंगी।

राज ने सोचा कि वह अकेले नहीं बैठ सकता। चलिए, मैं आपकी मदद करता हूँ। आप बस आराम करिए, उसने बेलन उसकी हाथ से लेकर कहा, मैं खाना बना देता हूं।”

महिमा ने थोड़ी हिचकिचाहट दिखाई, नहीं, अगर मैं लेट गई तो और बीमार हो जाऊंगी। लेकिन राज की बातों में एक मजबूरी थी और आखिरकार उन्होंने मिलकर खाना बना लिया।

महिमा का पति विनय कंपनी के काम से बाहर गया था। दोनों के बीच प्यार था, लेकिन अभी तक कोई संतान नहीं थी। महिमा, जो अब 35 साल की हो चुकी थी, अपने दोस्तों को बच्चों के साथ देखकर अक्सर अकेलापन महसूस करती थी। वह अपनी डायरी में अपनी भावनाओं को लिखती रहती थी।

जब रोटियाँ बन गईं, तो राज ने उसे आराम से बैठने के लिए कहा और बाकी सामान समेटने लगा। महिमा ने सिर पीछे की ओर टिका दिया और आँखें बंद कर लीं। इसी बीच, राज की नजरें महिमा की समीज पर पड़ गईं, और उसे एक आकर्षण का एहसास हुआ। अपने मन की खींचतान में वह थोड़ी देर के लिए खो गया।

क्या सब काम हो गया? महिमा ने अचानक आँखें खोलकर पूछा।

राज हड़बड़ाते हुए बोला, हां भाभी, बस हो गया… उसने तेजी से बाकी काम निपटाया और खाने की चीजें मेज पर रख दीं।

महिमा ने मुश्किल से दो रोटियाँ खाईं, वह भी राज की जिद पर। राज ने जबरदस्ती उसकी प्लेट में सब्जी डाल दी। खाने के बाद जब महिमा सोने जा रही थी, तो राज बोला, भाभी, थोड़ी देर के लिए अगले कमरे में बैठिए। मैं आपके लिए दवा लाने जा रहा हूँ।

रात भर में बुखार उतर जाएगा, राज ने दरवाजे की ओर बढ़ते हुए कहा, मैं पास वाले कैमिस्ट से दवा लेकर आता हूँ। दरवाजा बंद कर लेना, मैं जल्दी आता हूँ।

महिमा ने दरवाजा बंद किया और सोफे पर बैठ गई, उसके मन में अनगिनत विचार दौड़ने लगे। राज का उसके लिए इतना चिंता करना उसे अजीब सा लग रहा था, लेकिन इस समय अकेलापन भी महसूस हो रहा था।

राज ने कैमिस्ट की दुकान में प्रवेश किया। “क्या बात है, राज बाबू? दुकानदार ने पूछा। राज ने मन में सोचा, कैसे एक पल में उसकी पूर्णता की तलाश उसके ससुराल की दीवारों से बाहर निकल रही है।

उसके विचारों में महिमा की छवि तैर रही थी। इस समय उसे यह समझ आ रहा था कि उसकी बेकरारी केवल उसके बुखार से नहीं, बल्कि उस गहन कनेक्शन से भी उत्पन्न हो रही थी, जो वह महिमा के साथ महसूस कर रहा था।

घर लौटने पर डोर बैल बजाते ही महिमा ने दरवाजा खोल दिया और बोली, ‘‘यहीं बैठी थी लगातार…’’

‘‘जी भाभी, आइए अंदर चलिए…’’ राज ने अपने माथे से पसीना पोंछते हुए कहा.

महिमा अपने कमरे में आ कर लेट गई. राज ने उसे पहले बुखार की दवा दी. महिमा दवा ले कर सोने के लिए लेटने लगी तो राज ने उसे रोका, ‘‘भाभी, अभी एक दवा बाकी है…’’

‘‘कितनी सारी ले आए भैया?’’ महिमा ने थकी आवाज में बोला और बाम ले कर माथे पर लगाने लगी.

‘‘भाभी दीजिए, मैं लगा देता हूं,’’ कह कर राज ने उस से बाम की डब्बी ले ली और उस के माथे पर मलने लगा. थोड़ी देर बाद उस ने महिमा को नींद वाली गोली भी खिला दी और लिटा दिया.

राज उस का माथा दबाता रहा. थोड़ी देर बाद उस ने पुष्टि करने के लिए महिमा को आवाज दी. ‘‘भाभी सो गईं क्या?’’

कोई जवाब नहीं मिला. राज ने उस के चेहरे को हिलाडुला कर भी देख लिया. कोई प्रतिक्रिया न पा कर वह समझ गया कि रास्ता साफ हो चुका है.

राज की कनपटियों में खून तेजी से दौड़ने लगा. वह बत्ती जलती ही छोड़ महिमा के ऊपर आ गया. मर्यादा के आवरण प्याज के छिलकों की तरह उतरते चले गए. कमरे में आए भूचाल से मेज पर रखी विनयमहिमा की तसवीर गिर कर टूट गई.

सबकुछ शांत होने पर राज थक कर चूरचूर हो कर महिमा के बगल में लेट गया.

‘‘बस अब बुखार उतर जाएगा भाभीजी… इतना पसीना जो निकलवा दिया मैं ने आप का,’’ राज बेशर्मी से बड़बड़ाया और महिमा की कुछ तसवीरें खींचने के बाद उसे कपड़े पहना दिए.

महिमा अब तक धीमेधीमे कराह रही थी. राज पलंग से उतरा और खुद भी कपड़े पहनने लगा. तभी उस की नजर आधी खुली दराज पर गई. भूल से महिमा अपनी डायरी उसी में छोड़ी हुई थी. राज ने उसे निकाला और कपड़े पहनतेपहनते उस के पन्ने पलटने लगा.

अचानक एक पेज पर जा कर उस की आंखें अटक गईं. वह अभी अपनी कमीज के सारे बटन भी बंद नहीं कर पाया था लेकिन उस को इस बात की परवाह नहीं रही. वह अपलक उस पन्ने में लिखे शब्दों को पढ़ने लगा. उस में महिमा ने लिखा था, ‘बस अब बहुत रो लिया, बहुत दुख मना लिया औलाद के लिए. मेरा बेटा मेरे पास था और मैं उसे पहचान ही नहीं पाई. जब से मैं यहां आई, उसे बच्चे के रूप में देखा तो आज अपनी कोख के बच्चे के लिए इतनी चिंता क्यों? मैं बहुत जल्दी राज को कानूनी रूप से गोद लूंगी.’

राज की आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा. वह सिर पकड़ कर वहीं बैठ गया और जोरजोर से रोने लगा, फिर भाग कर महिमा के पैरों को पकड़ कर अपना माथा उस से रगड़ते हुए रोने लगा, ‘‘भाभी, मुझे माफ कर दो… यह क्या हो गया मुझ से.’’

अचानक राज का ध्यान महिमा के बिखरे बालों पर गया. उस ने जल्दी से जमीन पर गिरी उस की हेयर क्लिप उठाई और महिमा का सिर अपनी गोद में रख कर बालों को संवारने लगा. वह किसी मशीन की तरह सबकुछ कर रहा था. हेयर क्लिप अच्छे से उस के बालों में लगा कर राज उठा और घर से निकल गया.

अगली सुबह तकरीबन 8 बजे महिमा की आंखें खुलीं. उस का सिर अभी तक भारी था. घर में भीड़ लग चुकी थी.

एक आदमी ने आखिरकार बोल ही दिया, ‘‘देवरभाभी के रिश्ते पर भरोसा करना ही पागलपन है…’’

महिमा के सिर में जैसे करंट लगा. वह सवालिया नजरों से उसे देखने लगी. तभी इलाके के पुलिस इंस्पैक्टर ने प्रवेश किया और बताया, ‘‘आप के देवर राज की लाश पास वाली नदी से मिली है. उस ने रात को खुदकुशी कर ली…’’

महिमा का कलेजा मुंह को आने लगा. वह हड़बड़ा कर पलंग से उठी लेकिन लड़खड़ा कर गिर गई.

एक महिला सिपाही ने राज के मोबाइल फोन में कैद महिमा की कल रात वाली तसवीरें उसे दिखाईं और कड़क कर पूछा, ‘‘कल रंगरलियां मनातेमनाते ऐसा क्या कह दिया लड़के से तू ने जो उस ने अपनी जान दे दी?’’

तसवीरें देख कर महिमा हैरान रह गई. अपनी शारीरिक हालत से उसे ऐसी ही किसी घटना का शक तो हो रहा था लेकिन दिल अब तक मानने को तैयार नहीं था. वह फूटफूट कर रोने लगी.

इंस्पैक्टर ने उस महिला सिपाही को अभी कुछ न पूछने का इशारा किया और बाकी औपचारिकताएं पूरी कर वहां से चला गया. धीरेधीरे औरतों की भीड़ भी छंटती गई.

विनय का फोन आया था कि वह आ रहा है, घबराए नहीं, लेकिन महिमा बस सुनती रही. उस की सूनी आंखों के सामने राज का बचपन चल रहा था. जब वह नईनई इस घर में आई थी.

दोपहर तक विनय लौट आया और भागते हुए महिमा के पास कमरे में पहुंचा. वह जड़वत अभी भी पलंग पर बैठी शून्य में ताक रही थी. विनय ने उसके कंधे पर हाथ रखा लेकिन महिमा का शरीर एक ओर लुढ़क गया.

‘‘महिमा… महिमा…’’ चीखता हुआ विनय उसे झकझोरे जा रहा था, पर महिमा कभी न जागने वाली नींद में सो चुकी थी.

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